अलंकार

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Saturday, June 6, 2020

अलंकार

            हेलो...!!! दोस्तों...!!! फिर से आपका स्वागत है हमारे आज के इंटरस्टिंग फेक्ट में। आज मैं आपको बताऊंगा शास्त्रीय संगीत में अलंकार क्या है और अलंकार का रियाज केसे करें ? उस के बारे में जानेंगे। तो चलिए शुरू करते हैं....

              संगीत रत्नाकर[क] के अनुसार, नियमित वर्ण समूह को अलंकार कहते हैं। सरल शब्दों में, स्वरों के नियमानुसार चलन को अलंकार कहते हैं। अलंकारों को बहुत से लोग पलटा भी कहते हैं। अलंकारसंगीत के अभ्यास का प्रथम चरण होतें हैं। शास्त्रीय गायन तथा वादन के क्षेत्र मे विद्यार्थियों को सर्वप्रथम अलंकारो का अभ्यास करवाया जाता है। वाद्य के विद्यार्थियों को अलंकार के अभ्यास से वाद्य पर विभिन्न प्रकार से उंगलियां घुमाने की योग्यता हासिल होती है वहीं गायन क्षेत्र से जुड़े लोगो को इस के नियमित अभ्यास से कंठ मार्जन मे विशेष सहायता मिलती है।

              अलंकारों में कई कड़ियाँ होती है, जो आपस में एक दूसरे से जुड़ी रहतीं हैं। अलंकारों की रचना में- प्रत्येक अलंकार में मध्य सप्तक के (सा) से तार सप्तक के (सां) तक आरोही वर्ण होता है जैसे- "सारेग, रेगम, गमप, मपध, पधनी, धनीसां" व तार सप्तक के (सां) से मध्य सप्तक के (सा) तक अवरोही वर्ण होता है जैसे- "सांनिध, निधप, धपम, पमग, मगरे, गरेसा"। 

                 तो ये थी हमारी आज की जानकारी अलंकार के बारे में। मुझे लगता है कि आपको बहुत पसंद आया होगा। अगली बार फिर से मिलेंगे ऐसे ही कुछ इंटरेस्टिंग फैक्ट्स के साथ। शुक्रिया....!!!

                 मैं यहां कुछ अलंकारों के फोटो लगा रहा हूं। जिस से आप और अच्छे से समझ पाएं।


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