थाट
हेलो दोस्तों फिर से आपका स्वागत है हमारी आज की इंटरेस्टिंग म्यूजिकल इंफॉर्मेशन में। आज मैं आपको थाट के बारे में पूरी जानकारी दूंगा। तो चलिए शुरू करते हैं।
थाट की व्याख्या:-
जिसमें से राग की उत्पत्ति होती है उसे थाट कहते हैं। थाट भारतीय शास्त्रीय संगीत में रागों के विभाजन की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों मैं से 7 क्रमानुसार मुख्य स्वरों के के उस समुदाय को थाट कहते हैं। वैसे तो बहुत सारे थाटों का संगीत में वर्णन किया गया है परंतु हमारे भारतीय शास्त्रीय संगीत में 10 थाटों का मुख्य रूप से उपयोग किया जाता है। उसी प्रकार कर्नाटक शास्त्रीय संगीत में 70 थाट का उपयोग प्रचलित है।थाट के उपयोग से ही राग की रचना होती है।इसीलिए थाट राग की रचना का एक महत्वपूर्ण भाग है।जिसके बिना राग की उत्पत्ति होना संभव नहीं है। ऐसा माना गया है कि भारतीय शास्त्रीय संगीत में थाट राग की आत्मा है।
भारतीय शास्त्रीय संगीत में 10 थाटों का मुख्य रूप से उपयोग और वर्णन हमें नजर आता है।
यहां पर मैं 10 थाटों के नाम और उसमें उपयोगी स्वरों के समूह की रचना कैसी है वह आपको बताऊंगा।
भारतीय शास्त्रीय संगीत के 10 थाट और उनके स्वर:-
- बिलावल - सा, रे, ग, म, प, ध, नि (केवल शुद्ध स्वर)
- कल्याण - सा, रे, ग, म॑, प ध, नि (मध्यम तीव्र)
- खमाज- सा, रे ग, म, प ध, नि॒ (निषाद कोमल)
- आसावरी- सा, रे, ग॒, म, प ध॒, नि॒ (गांधार, धैैैवत और निषाद कोमल)
- काफ़ी- सा, रे, ग॒, म, प, ध, नि॒ (गांधार और निषाद कोमल)
- भैरवी- सा, रे॒, ग॒, म, प ध॒, नि॒ (ऋषभ, गांधार, धैैैवत और निषाद कोमल)
- भैरव- सा, रे॒, ग, म, प, ध॒ नि (ऋषभ और धैैैवत कोमल)
- मारवा- सा, रे॒, ग, म॑, प, ध नि (ऋषभ कोमल, मध्यम तीव्र)
- पूर्वी- सा, रे॒, ग, म॑, प ध॒, नि (ऋषभ और धैैैवत कोमल, मध्यम तीव्र)
- तोड़ी- सा, रे॒, ग॒, म॑, प, ध॒, नि (ऋषभ गांधार और धैैैवत कोमल, मध्यम तीव्र)
यहां पर मैंने 10 थाट में उपयोगी स्वर समूह के बारे में लिखा हुआ है। जिससे आपको थाट के बारे में अच्छे से जानकारी मिल गई होगी।
भारतीय शास्त्रीय संगीत के कुछ थाटों के पाश्चात्य संगीत में क्या नाम होते हैं वह इमेज में बताया गया है।
थाट - राग पद्धति में स्वर-साम्य का बहुत अधिक ध्यान रखा गया है। इस पद्धति के अनुसार थाट के अंतर्गत उन्हीं रागों को रखा गया है जिनके स्वरों में अधिक समानता है। उदाहरण के तौर पर कल्याण थाट में मध्यम तीव्र लगता है, इसीलिए कल्याण थाट में से उत्पन्न होने वाले रागों में मध्यम तीव्र लगना अनिवार्य है। इसी प्रकार काफी थाट में गांधार और निषाद स्वर कोमल है, इसीलिए काफी थाट मैं से उत्पन्न होने वाले रागों में गांधार और निषाद स्वर कोमल लगना जरूरी है।
तो यह थी आज की इंटरेस्टिंग जानकारी थाट के बारे में। मुझे विश्वास है कि आपको बहुत पसंद आई होगी। अगली बार फिर से मिलेंगे ऐसी ही कुछ इंटरेस्टिंग संगीत संबंधित जानकारी के साथ। शुक्रिया।
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English translation
That
Hello friends, welcome back to our today's interesting musical information. Today I will give you complete information about That. So let's start.
Explanation of That: -
That which is the origin of the raga is called That. That is the method of dividing ragas in Indian classical music. That community of the major notes is called Thaat from 7 of the 12 notes of the octave. Although many thaats are described in music, but 10 thaats are mainly used in our Indian classical music. Similarly, the use of 70 Thaat is prevalent in Carnatic classical music. It is by the use of Thata that Raga is composed. That is why an important part of the composition of Raga. Without which it is not possible to create a Raga. It is believed that Indian classical music has the soul of that raga.
In Indian classical music, we see the use and description of 10 thatas mainly.
Here I will tell you how the composition of the names of the 10 thats and the group of useful notes in it.
10 thaats of Indian classical music and their vocals: -
- Bilawal - Sa, Re, ga, Ma, Pa, Dha, Ni (No tone soft or sharp)
- Kalyan - Sa, Re, C, M, Padha, Ni (madhyam tivra)
- Khamaj- Sa, Re, ga, ma, Pa, dha, Ni (Nishad Komal)
- Ashawari- Sa, Re, Ga, Ma, Padha, Ni (Gandhara, Dhaiyawat and Nishad Komal)
- Kaafi - sa, re, ga, ma, pa, dha, ni (Gandhara and Nishad Komal)
- Bhairavi - sa, re, ga, ma, paddha, nil (Rishabh, Gandhara, Dhaiyawat and Nishad Komal)
- Bhairava - sa, re, ga, ma, pa, dha, ni (Rishabh and Dhaiyawat Komal)
- Marwa- Sa, re, ga, ma, pa, dha, ni (Rishabh Komal, madhyam tivra)
- Purvi - sa, re, ga ma, pa, dha, ni (Rishabh and Dhaiyawat komal, madhyam tivra)
- Todi - Sa, re, ga, ma, pa, dha, ni (Rishabh Gandhar and Dhaiyawat komal, madhyam tivra)
Here I have written about the useful notes group in 10 thaat. With which you must have got a good idea about that.
What are the names in Western music of some of the Thaat of Indian classical music is described in the image.
In the Thaat-Raga method, a lot of attention has been taken to the similarity of notes. According to this method, only those ragas have more similarity in their notes under that Thaat. For example, madhyam tivra is felt in Kalyan Thaat, hence it is mandatory to have madhyam tivra in ragas originating from Kalyan Thaat. Similarly, Gandhara and Nishad swara are komal in kafi thaat, hence it is necessary to sound soft in the ragas originating from Kafi thaat.
So this was today's interesting information about Thaat. I am sure you must have liked it very much. See you again next time with some interesting music related information. Thank you.
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